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मंगलवार, 9 मई 2017

यात्रा वृतांत - कुंजापुरी शक्तिपीठ





कुंजापुरी से नीरझरना, ट्रेकिंग एडवेंचर



कुंजापुरी ऋषिकेश क्षेत्र का एक कम प्रचलित किंतु स्वयं में एक अद्वितीय एवं दर्शनीय तीर्थ स्थल है। शक्ति उपासकों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है क्योंकि कुंजापुरी पहाडी के शिखर पर बसा यह शक्तिपीठ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 52 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ माता सती का छाती वाला हिस्सा गिरा था। कुंजा पहाडी के शिखर पर बसे इस तीर्थ का एकांत-शांत वातावरण, प्रकृति की गोद में शांति को तलाशते पथिकों के लिए एक आदर्श स्थान है। 



राह का प्राकृतिक सौंदर्य़ – 
यह स्थान ऋषिकेश से महज 25 किमी की दूरी पर स्थित है। नरेन्द्रनगर से होकर यहाँ का रास्ता हरे-भरे सघन जंगल से होकर जाता है, जिसके बीच यात्रा जैसे प्रकृति की गोद में शांति-सुकून का गहरा अहसास देती है। जैसे-जैसे सफर ऊपर बढ़ता है नीचे ऋषिकेश, गंगाजी व ऊधर जोलीग्रांट-देहरादून का विहंगमदृश्य क्रमशः स्पष्ट होने लगता है। आसपास पहाड़ियों पर बसे गाँव, उनके सीढ़ीदार खेत दूर से दिलकश नजारा पेश करते हैं। बरसात के बाद अगस्त-सितम्बर के माह में इस राह का नजारा अलग ही रहता है जब पग-पग पर झरने झरते मिलते हैं। नरेन्द्रनगर रास्ते का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो टिहरी के राजा का आवास स्थल रहा है। यहाँ का आनन्दा रिजोर्ट बड़ी हस्तियों के बीच खासा लोकप्रिय है, जिसके दूरदर्शन कुंजापुरी से सहज ही किए जा सकते हैं।

कुंजादेवी ट्रेकिंग मार्ग
चम्बा-उत्तरकाशी की ओर जाता मुख्य मार्ग से हिंडोलखाल स्टॉप से एक सड़क दाईं ओर मुडती है। यहाँ से 4 किमी अपने वाहन से कुंजापुरी तक जाया जा सकता है। दूसरा एडवेंचर प्रेमियों के लिए 3 किमी का ट्रेकिंग रुट है। जो हल्की चढ़ाई और घने बाँज के जंगलों से होकर जाता है। इसकी बीच ट्रेकिंग एक यादगार अनुभव रहती है। रास्ते में बंदर, लंगूर, जंगली पक्षी सुनसान के सहचर के रुप में मिलते रहते हैं। इस सीजन में हिंसालू(आंछा), किल्मोडे (शांभल), मेहो (शेगल) जैसे कांटेदार झाडियों व वृक्षों में लगे खटे-मीठे जंगली फल सहज ही रास्ते में यात्रियों का स्वागत करते हैं।
ट्रेकिंग मार्ग का रोमाँच
रास्ते में कहीं-कहीं बहुत ही संकरे मार्ग से आगे बढ़ना होता है, नीचे सीधे गहरी खाई के दर्शन नवांतुकों को सर चकराने का अनुभव दे सकते हैं। ऐसे में सारा ध्यान अपनी राह पर आगे व बढ़ते चरणों में नीचे की ओर रहे तो ठीक रहता है। साथ में लाठी इस रास्ते में बहुत बड़ा सहारा सावित होती है। बहुत तंग जगह पर दाएं हाथ से पहाड़ का सहारा लेकर आगे बढ़ना सुरक्षित रहता है। नीचे खाई की और देखने की भूल न करें। ट्रेकिंग रास्ते में इस तरह के 3-4 छोटे-छोटे पड़ाव आते हैं। दूसरा, ऐसे स्थानों पर अपना सेल्फी प्रेम दूर ही रखें, क्योंकि ऐसा प्रयोग मिसएडवेंचर सावित हो सकता है। बीच-बीच में विश्राम के शानदार ठिकाने बने हुए हैं। पत्थरों के आसन पर, बांज-देवदार के घनी छाया के नीचे कुछ पल बैठकर यहाँ रिचार्ज हो सकते हैं। रास्ते में घने बाँज के बनों के बीच बहती हवा के झौंके नेचुलर ऐ.सी. का काम करते हैं। पूरे रास्ते में ऐसे झौंके दोपहरी की गर्मी के बीच ट्रेकरों के रास्ते को सुकूनदायी बनाए रखते हैं।

 मंदिर परिसर में
आधा-पौना घंटे बाद यात्री पीछे की ओर से मंदिर परिसर में प्रवेश करते हैं। यहां मुख्य गेट पर प्रहरी के रुप में दो शेर स्वागत करते हैं। मंदिर में प्रणाम, पूर्जा अर्चन के बाद बाहर परिसर के खुले एवं साफ-सुथरे परिसर में भ्रमण आनन्ददायी रहता है। यहाँ से चारों ओर घाटी, पर्वत, चोटियों का विहंगम दृश्य यात्रियों को दूसरे लोक में विचरण की अनुभूति देता है। 1675 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर इस क्षेत्र का सबसे ऊँचा स्थल है। यहाँ से नीचे दक्षिण की ओर ऋषिकेश, सुदूर हरिद्वार दक्षिण-पश्चिम की ओर जोलीग्रांट-देहरादून के दर्शन किए जा सकते हैं। 
 उत्तर में गढ़वाल के शिखरों के दर्शन साफ मौसम में सहज ही किए जा सकते हैं, जिनमें स्वर्गारोहण, बंदरपूँछ, चौखम्बा, गंगोत्री चोटियां प्रमुख हैं। यहाँ से इस क्षेत्र के अन्य दो शक्तिपीठ सुरकुण्डा और चंद्रवदनी के दर्शन भी किए जा सकते हैं, जो मिलकर एक शक्तिपीठों का दिव्य त्रिकोण बनाते हैं। यहाँ से नीलकण्ठ की पहाड़ियों सहज ही दर्शनीय हैं, जो यहाँ से काफी नीचे दीखती हैं।
यहाँ के परिसर में बने चबूतरे व इसके आसपास बने बेंचों पर बैठकर सहज ही हरपल वह रहे हवा के झौंकों का लुत्फ उठाया जा सकता है। यहाँ चाय-नाश्ता के लिए स्थानीय ढावा है। यहाँ के खुले व साफ परिसर में यात्री सुकून के पल विता सकता है, जो अन्य भीड़ भरे कंजेस्टेड तीर्थों में मुश्किल होता है। शहरों की भीड़ ते आजीज आ चुके तीर्थयात्रियों व प्रकृति प्रेमियों के लिए कुंजापूरी एक आदर्श स्थल है। यदि यहाँ प्रातः 7 बजे पहुंचने की व्यवस्था हो सके तो यहाँ के सूर्योदय का दर्शन एक यादगार अनुभव रहता है।

परिसर से बापसी का सीढीदार मार्ग
 यहाँ से बापसी मोटर मार्ग से हो सकती है। सड़क तक का रास्ता छत से ढकी लगभग 300 सीढियों से होकर जाता है। हर सीढ़ी में देवीसुक्त के मंत्र उत्कीर्ण हैं, जो इस यात्रा को विशेष बनाते हैं। श्रद्धालु इनका पाठ करते हुए सीढी का अवरोहण करते हैं। नीचे टैक्सी स्टेंड में भी चाय-नश्ते की कई दुकानें हैं। जहाँ से अपने बाहन से बापस आया जा सकता है। इसी रास्ते से सीधा बढ़ते हुए पुराने ट्रेकिंग मार्ग से नीचे हिंडोलखाल उतरा जा सकता है। जहाँ से चम्बा की ओर से आ रही बसों से सीधे ऋषिकेश पहुँचा जा सकता है।

गाँव से होता हुआ आगे का ट्रेकिंग मार्ग
ट्रेकिंग के इच्छुक रोमाँचप्रेमियों के लिए सडक के पहले मोड से वाइँ और नीचे की और जाते हुए पैदल मार्ग है, जो पटेर गांव से नीचे कच्ची सड़क तक पहुंचता है। यहाँ से एक सीधा मार्ग जंगल से होते हुए सीधे तपोवन पहुंचता है। जो 6 किमी लम्बा है। दूसरा ट्रेकिंग मार्ग वाइँ और से कोड़ाड, धारकोट व नीरगाँव से होकर बढ़ता है, जो कुल मिलाकर 15 किमी लम्बा है और अंत में नीरझरने से होकर नीचे ऋषिकेश-देवप्रयाग मुख्यमार्ग में निर्गड्डू पर मिलता है।
यह ट्रेकिंग मार्ग शांत वादियों से होकर गुजरता है। गांव के सीधे-सरल और मेहनती लोग यात्रा में अच्छे मार्गदर्शक और मेहमानवाज की भूमिका निभाते हैं। रास्ते में चाय व ठंडे के शौकीनों को रास्ते में निराश होना पड़ सकता है। रास्ता निर्जन है, कोई दुकान या ढावा नहीं है। नीरगाँव में आकर ही एक-दो दुकाने हैं, जहाँ ये जरुरतें पूरी की जा सकती हैं।

 नीरझरना ट्रेकिंग मार्ग
नीरगाँव से मोटर मार्ग से नीचे की ओर पैदल मार्ग नीर झरने की और बढ़ता है। गाँव के बीच से ही खेतों की मेड़ पर सीमेंट से बनी छोटी नहरें(कुल्ह) पानी को आगे प्रवाहित करती हैं। इसके कल-कल कर बहते जल की आबाज रास्ते के सफर में मिठास घोलती है। रास्ते में सीढ़ीदार खेतों में चाबल से लेकर अन्य फसलें देखी जा सकती हैं। हालांकि फल-सब्जी का चलन यहाँ नहीं दिखा, जो पानी की प्रचुरता के कारण सम्भव था। गांव के छोर पर नीचे नीर झरना आता है। अंतिम पढ़ाव गहरी उतराई से भरा है, जहाँ थके ट्रेकरों की कड़ी परीक्षा होती है। एक कदम फिसला कि गए सीधे खाई में। सामने झरना दो चरणों में नीचे गिरता है। उपर एक झील बनती है, फिर पानी नीचे दूसरी झील में गिरता है। यहाँ के निर्मल व शीतल जल में स्नान का लोभ शायद ही कोई संवरण कर पाए। इसमें डुबकी रास्ते की थकान को छूमंतर करती है। आसपास बने ढावों से मैगी चाय व नाश्ते का आनन्द उठाया जा सकता है।
यहाँ से नीचे आधा किमी भी छोटे छोटे झरनों से भरा है। जिसका यात्री पूरा लुत्फ उठा सकते हैं। कोई हरिद्वार-ऋषिकेश में आया यात्री कल्पना भी नहीं कर पाता कि यहाँ एक ऐसा प्राकृतिक झरने का खजाना भी छिपा हुआ है। ट्रेकिंग मार्ग नीचे आधा किमी बाद कच्ची सड़क से मिलता है। जो आगे लगभग 2 किमी के बाद निर्गड्डू में मुख्य मार्ग से मिलती है। जहाँ से तपोपन 1.5 किमी है। जहाँ से आटो टेक्सी आदि से यात्री ऋषिकेश बस स्टेंड होते हुए अपने गन्तव्य की ओर बढ़ सकते हैं।

बुधवार, 26 मई 2021

यात्रा वृतांत कैसे लिखें?

                                                      यात्रा वृतांत लेखन के चरण

निश्चित रुप में यात्रा वृतांत का पहला ठोस चरण तो यात्रा के साथ शुरु होता है। व्यक्ति कहाँ की यात्रा कर रहा है, किस भाव और उद्देश्य के साथ सफर कर रहा है और किस तरह की जिज्ञासा व उत्सुक्तता लिए हुए है, इनकी गहनता, गंभीरता एवं व्यापकता एक अच्छे यात्रा वृतांत के आधार बनते हैं तथा यात्रा वृतांत में रोचकता और रोमाँच का रस घोलते हैं और साथ ही ज्ञानबर्धक भी बनाते हैं।

यात्रा वृतांत ज्ञानबर्धक बने इसके लिए यह भी आवश्यक हो जाता है कि यात्रा स्थल या रुट का पहले से कुछ अध्ययन किया गया हो। या कह सकते हैं कुछ रिसर्च की हो। पहले इसका एक मात्र साधन दूसरों के लिखे यात्रा वृतांत पढ़ना या वहाँ से घूम आए लोगों से की गई चर्चा होती थी। लेकिन आज इंटरनेट के जमाने में यह काम बहुत आसान हो गया है। लगभग हर लोकप्रिय ठिकानों पर ब्लॉग से लेकर वीडियोज मिल जाएंगे। बाकि कसर गूगल गुरु पूरा कर देते हैं, जिसमें किसी भी स्थान पर तमाम तरह की जानकारियाँ उपलब्ध रहती हैं।

यहीं से यात्रा वृतांत में नूतनता लाने के सुत्र भी मिल जाते हैं, कि अब तक दूसरे यात्री क्या कवर कर चुके हैं और इसमें कौन से पहलु या एंग्ल अभी बाकि हैं। हो सकता है कि अमुक यात्रा में आपकी रुचि के विषय पर अभी कोई प्रकाश ही न डाला गया हो या जो जानकारियाँ उपलब्ध है वे आपकी जिज्ञासा व उत्सुक्तता का समाधान नहीं कर पा रही हों। ऐसे में यह जानकारी का अभाव या खालीपन आपके यात्रा लेखन के नूतनता का एक प्रेरक तत्व बन जाता है।

उदाहरण के लिए हम एक शैक्षणिक भ्रमण में ऋषिकेश के पास कुंजादेवी शक्तिपीठ से बापसी में नीरझरना घूमना चाहते थे, लेकिन हमें कोई इसकी जानकारी देने वाला नहीं मिला। इंटरनेट खंगालने पर भी नीरझरने की कुछ फोटो या वीडियो के अलावा रुट की कोई जानकारी नहीं मिली। सो शिखर पर बसे कुँजापुरी से बापसी में लोगों से पूछते हुए, बीच में राह भटकते हुए हम इसको कवर किए थे। लेकिन यह स्वयं में एक रोचक एवं रोमाँचक यादगार यात्रा बन गई थी। इसे आप चाहें तो आगे दिए लिंक में पढ़ सकते हैं।यात्रा वृतांत - कुंजापुरी से नीरझरना ट्रैकिंग एडवेंचर।

और यदि स्थान बहुत लोकप्रिय है और इसमें पर्याप्त कवरेज हो चुकी है, तो भी यात्रा लेखक  अपने विशिष्ट नजरिए, अंदाज व शैली के आधार पर इसे नयापन दे सकता है, बल्कि देता है। एक ही स्थान को देखने के अनगिन नजरिए हो सकते हैं। किसी भी स्थान का प्राकृतिक सौंदर्य, भौगोलिक विशेषता, ऐतिहासिक-पौराणिक पृष्ठभूमि, वहाँ का रहन-सहन, खान-पान, लोक संस्कृति, विशिष्टता, राह की खास बातें आदि कितनी बातें, कितने तरीकों से व्यक्त हो सकती हैं। इसमें व्यक्ति के अपने मौलिक अनुभव एक नयापन घोलने में सक्षम होते हैं, जिससे कि यात्रा वृतांत एक ताजगी लिए तैयार होता है।

इसके साथ कोई भी स्थान या रुट कितना ही सुंदर, आकर्षक या मनभावन क्यों न हो, वहाँ कि कुछ कमियाँ, राह की दुर्गमताएं, समस्याएं या क्लचरल शॉक्स आदि भी यात्रा वृतांत के रोचक विषय बनते हैं, जो पाठकों के लिए उपयोगी हो सकते हैं। इससे नए यात्री या पर्यटक इनसे परिचित होकर आवश्यक तैयारी या सावधानी के साथ यात्रा का पूरा आनन्द ले पाते हैं। यदि लेखक किसी विषय की जानकारी रखता हो या विशेषज्ञता लिए हो तो स्थानीय समस्याओं के संभावित समाधान पर भी प्रकाश डाल सकता है, जो यात्रा वृतांत में ज्ञानबर्धन आयाम जोड़ते हैं और इसकी पठनीयता बढ़ जाती है। इसमें संवेदनशील व संतुलित रवैया उचित रहता है तथा दोषारोपण या छिद्रान्वेषण आदि से हर हालत में बचना उचित रहता है।

यात्रा वृतांत में राह में मिले अन्य यात्रियों, स्थानीय लोगों के साथ चर्चाएं भी यात्रा वृतांत के अनिवार्य पहलु रहते हैं, जो जानकारी को और प्रामाणिक तथा रोचक बनाते हैं। इससे पाठकों की कई सारी जिज्ञासाओं व प्रश्नों के समाधान बात-बात में मिल सकते हैं। अतः यात्रा में लोगों से संवाद एक महत्वपूर्ण तत्व रहता है, जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यात्रा लेखक यदि घूमने के जुनून व जिज्ञासाओं से भरा हुआ है, तो ऐसे संवाद सहज रुप में ही घटित हो जाते हैं और प्रकृति भी राह में उचित पात्र के साथ मुलाकात में सहायक बनती है। इसमें कई लोगों को थोड़ा अचरज हो सकता है, लेकिन अनुभवी घुम्मकड़ ऐसे संयोगों को सहज रुप में समझ रहे होंगे व ऐसे संस्मरणों से नित्य रुबरु होते रहते हैं।

यात्रा वृतांत में फोटो का अपना महत्व रहता है। सटीक फोटो इसकी पठनीयत को बढ़ा देता है। यात्रा लेखक अपने लेखकीय कौशल के आधार पर जो कह नहीं पाता, वह एक उचित चित्र बखूबी व प्रभावशाली ढंग से स्पष्ट कर देता है, जिससे पाठक को यात्रा के साथ भाव चित्रण में सहायता मिलती है। हालाँकि किसी स्थल के प्राकृतिक सौंदर्य़, भौगोलिक विशेषता या भावों के सुंदर व जीवंत चित्रण को लेखक अपनी कलम से करने में काफी हद तक सक्षम होता है, जिसको पढ़ने का अपना आनन्द रहता है। किसी जमाने में जब फोटोग्राफी का चलन नहीं था, तो लोग पेन या पेंसिल के स्कैच से भी चित्रों का काम चला लिया करते थे।

यात्रा वृतांत लेखन में एक महत्वपूर्ण पहलू राह के पड़ाव व स्थानों के नाम व उनसे जुड़ी मोटी व खास जानकारियाँ भी रहते हैं। इसके लिए एक डायरी व पेन साथ में रहे, तो उचित रहता है। जहाँ भी जो स्थान आए, इनके नाम नोट किए जा सकते हैं। और यदि पहले से कुछ रिसर्च कर रखें हैं, तो इन स्थानों को पहले से ही डायरी में सुचिबद्ध कर रखा जा सकता है तथा साथ में सफर कर रहे लोगों से कुछ खास जानकारियों को बटोरा जा सकता है। फिर अपने अनुभव के आधार पर इनमें अतिरिक्त नयापन जोड़ा जा सकता है। अपनी डायरी या नोटबुक में नोट किए गए ये नाम या बिंदु बाद में लेखन में सहायक बनते हैं।

यात्रा पूरी होने के बाद फिर लेखन की बारी आती है। इसमें लेखन से जुड़े सर्वसामान्य नियमों का अनुसरण करते हुए पहला रफ ड्राफ्ट तैयार किया जाता है, जिसमें अपनी यात्रा के अनुभवों को एक क्रम में कागज या कम्पयूटर-लैप्टॉप पर उतारा जाता है। फिर शांत मन से कुछ और विचार मंथन व शोध के आधार पर दूसरे ड्रॉफ्ट में अतिरिक्त आवश्यक तथ्यों व जानकारियों को शामिल किया जा सकता है तथा इसमें भाषा की अशुद्धियों को ठीक करते हुए इसे पॉलिश किया जाता है। यदि लेखन की इस प्रक्रिया को विस्तार से जानना है तो हमारे ब्लॉग पर लेखन कला - लेखन की शुरुआत करें कुछ ऐसे को पढ़ा जा सकता है।

यात्रा वृतांत लेखन में यदि इन बातों का ध्यान रखा जाए व इन चरणों का अनुसरण किया जाए, तो निश्चित ही एक बेहतरीन यात्रा ब्लॉग तैयार हो जाएगा। और पाठक इसको पढ़कर यात्रा के साथ जुडी रोचकता व रोमाँच को अनुभव करेंगे। उनके ज्ञान में इजाफा होगा तथा वे आपके साथ भावयात्रा करते हुए सफर के आनन्द का हिस्सा बनेंगे। शायद यही तो एक यात्रा लेखन का मकसद रहता है।

यात्रा लेखन के ऊपर दिए बिंदुओं को और बेहतर समझने के लिए नीचे दिए कुछ यात्रा वृतांतों को पढ़ा जा सकता है -

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यात्रा वृतांत - सुरकुण्डा देवी का वह यादगार सफर, भाग-1

यात्रा वृतात - कुल्लू से नेहरुकुण्ड-वशिष्ट वाया मानाली लेफ्ट बैंक

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