गुरुवार, 3 अगस्त 2017

यात्रा वृतांत - बिजली महादेव जीप सफारी वाया नग्गर,जाणा-2(समाप्न किश्त)



 जाणा फाल से बिजली महादेव
आगे का लिंक मार्ग
 जाणा फाल से आगे 3-4 किमी के बीहड़ वनमार्ग से होते हुए रास्ता कोटधार गाँव पहुँचता है। यहाँ से एक लिंक रोड़ पक्के मार्ग से जुड़कर नीचे काईस गाँव की ओर बढ़ता है। 8-10 किमी का यह मार्ग फुटासोर, सोईल, राउगीनाला जैसे गाँवों से होते हुए लेफ्टबैंक मुख्यमार्ग में काईस स्थान पर पहुँचता है।


इस रास्ते पर जीप सफारी का अपना ही आनन्द है। रास्ते में ऐसे व्यू प्वाइंट आते हैं जहाँ से नीचे कुल्लू घाटी तो ऊपर कटराईं व मनाली की ओर का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है।


घाटी में उतरती हुई सड़क के साथ सर-सर बहती हवा के तेज झोंकों को रास्ते भर अनुभव किया जा सकता है। कभी बिना सड़क के यह अविकसित क्षेत्र आज पक्की सड़क व फल-सब्जी उत्पादन के साथ विकास की अंगड़ाइयाँ ले रहा है, जिसे यहाँ बन रहे नए घर-मकानों व लोगों के पहनावे से लेकर जीवनशैली देखकर सहज ही आँका जा सकता है।

बिजली महादेव की ओर
कोटाधार गाँव से सीधा रास्ता बिजली महादेव की ओर आगे बढ़ता है। आगे का रास्ता कच्ची सड़क से होकर गुजरता है, जिसमें जगह-जगह गहरी खाइयां व कुछ संकरे बिदुं ड्राइवर के कौशल व साहस की अग्निपरीक्षा लेते हैं। वाहन यदि किसी मजबूत व अनुभवी सारथी के हाथों हो तो सफर जीवन के सबसे रोमाँचक अनुभवों में शुमार हो सकता है। अनाड़ी व नौसिखिए ड्राइवर को आगे जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती, क्योंकि आगे रास्ता एकदम बीहड़ जंगल और रफ रुट से होकर गुजरता है।
मानवीय आबादी यहाँ दूर-दूर तक नज़र नहीं आती। दूसरा रास्ता बीच-बीच में बारिश के मौसम में कीचड़ से भरा रहता है, फिसलन खतरनाक हो सकती है क्योंकि रास्ते की खाईयाँ इतनी गहरी हैं कि नीचे देखना कमजोर दिलवालों के होश उडा सकता है।

वन विभाग का विश्रामगृह
जगह-जगह पर निर्मल जलस्रोत सफर को खुशनुमा बनाते हैं। प्रकृति गगनचुम्बी देवदार-रई-तोस के साथ बाँज-मोहरु-खनोर के वनों के बीच अपने भव्यतम एवं दिव्यतम रुप में राहगीरों का स्वागत करती है।


इसी तरह लगभग 8-10 किमी के बाद वन विभाग का विश्रामगृह आता है। हालाँकि यह वन विभाग के कर्मचारी व अधिकारियों के लिए बना हुआ है, लेकिन राहगीर इनके साथ मिलकर यहाँ चाय-नाश्ते का इंतजाम कर सकते हैं। अपने साथ अगर बर्तन व कच्ची सामग्री हो तो कहीं भी जलस्रोत के पास खुले मैदान या चट्टान पर रसोई तैयार की जा सकती है और कुछ पल प्रकृति की गोद में मौज-मस्ती भरी पिकनिक के बिताए जा सकते हैं।


आसपास वन विभाग की क्यारियों को देखा जा सकता है, जहाँ देवदार से लेकर बाँज, खोरश व अन्य ऊंचाई के पौधों की तैयार हो रही पनीरी देखी जा सकती है। इस बंगले से नीचे कुल्लू घाटी व शहर का विहंगावलोकन एक सुखद अनुभव रहता है।
इसके ठीक नीचे बनोगी, फाड़मेह और नीचे सेऊबाग जैसे गाँव पड़ते हैं। गाँववासियों की गाय-भेड़-बकरियों को इस ऊँचाई में चरते देखा जा सकता है। गाँववासी किसी ग्वाले या फुआल को यह जिम्मा सौंप देते हैं, जो इस ऊँचाई में तम्बू गाड़कर या किसी गुफा (रुआड़) को अपना ठिकाना बनाकर मवेशियों की देखभाल करता है। रास्ते में यदि कोई ऐसा ठिकाना मिले तो इनके साथ जंगल-जीवन के रोमाँचभरे अनुभवों को साझा किया जा सकता है।



यहीं से कच्ची मोटर मार्ग के ऊपर प्रचलित ट्रैकिंग रुट हैं, जिनमें एक फुटासोर से होकर चंद्रखनी की ओर बढ़ता है तो दूसरा माऊट नाग की ओर। फुटासोर रुट काफी लम्बा और बीहड़ है, जिसमें सबसे पहले उबलदा पानी आता है। दरअसल यहाँ जमीं से पानी का सोता फूटता है, जो उबाल लिए दिखता है। पानी हालाँकि एकदम ठंडा और निर्मल है, बस इसके उबाल के कारण इसे यह नाम दिया गया है। भादों की बीस के लिए यह एक प्रख्यात तीर्थ स्थल है। जहाँ स्थानीय गाँववासी दूर-दूर से यात्रा करते हुए आकर स्नान करते हैं। भादों की बीस इस क्षेत्र का एक लोकप्रिय तीर्थस्नान का दिन है, जब पर्वतों में जड़ी-बूटियाँ के फूल अपने पूरे शबाव पर होती हैं। ऐसे में जहाँ के जल स्रोत्र इनके औषिधियों गुणों से भरे होते हैं। साथ ही पहाड़ी रास्ते व बुगियाल सतरंगी गलीचे की तरह सजे होते हैं। जो किन्हीं तीर्थस्थल में स्नान नहीं कर पाते, वे ब्यास नदी में डुबकी लगाते हैं, यह मानते हुए कि सभी तीर्थ आखिर ब्यास नदी में आकर मिलते हैं।


धार(रिज) से होकर सफर का अंतिम पड़ाव
माऊट नाग का ट्रेैकिंग रुट आगे बिजली महादेव की ओर जा रहे कच्चे मोटर मार्ग में ही मिलता है। रैंउंश से आगे का जीप सफारी रुट भी माऊट नाग ट्रैकिंग के समानान्तर नीचे कुछ नालों को पार करते हुए, कुछ चट्टानी रास्तों को लांघते हुए, कुछ संकरे प्वाइंटों को क्रोस करते हुए सफर पहाड की धार (रिज) से होकर आगे बढ़ता है। जिसमें दाईं ओर कुल्लू घाटी के दर्शन होते हैं तो बाईँ ओर मणिकर्ण घाटी के। इस रिज से लगभग 8-10 किमी तक देवदार के घने जंगलों के बीच कच्ची सड़क के बीच बढ़ता सफर, अंत में बिजली महादेव के खुले मैदान तक ले आता है, जहाँ वाहन खड़ा कर मंदिर में दर्शन किए जा सकते हैं।
मैदान से बिजली महादेव तक का आधा किमी का रास्ता मध्यम चढ़ाई लिए हुए है। स्नो लाइन पर होने के कारण यहाँ वृक्ष गायब हैं। हरी मखमली घास व कुछ जंगली झाड़ियां ही राह में मिलती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इन्हीं के बीच दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ होती हैं, जिनकी पहचान आम राही नहीं कर पाता। अगस्त-सितम्बर माह में इनमें फूल आने से पूरा बुगियाल रंग-बिंरगे गलीचे में बदल जाता है।


शायद यह यहाँ यात्रा का सबसे बेहतर समय भी है। चोटी पर बसे होने के कारण यहाँ लगातार तेज हवा बहती रहती है। स्वागत गेट को पार करते ही सामने मंदिर दिखता है। सड़ के एक और विश्राम गृह तो दूसरी ओर पुजारियों के निवास स्थान।

मंदिर के समीप कैंट का एक वृहद वृक्ष है, जो स्वयं में एक आश्चर्य है। इसी के साथ है बिजलीमहादेव का प्रख्यात मंदिर, जिसमें पत्थर का शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के सामने आसमान को छूता लकड़ी का बुर्ज है। इसके नीचे हैं पत्थर के नंदी, शिवलिंग व अन्य मूर्तियाँ। मंदिर में दर्शन-वंदन-पूजन के बाद इस शिखर बिंदु से चारों ओर की घाटियों का विहंगावलोकन किया जा सकता है।
दक्षिण में भुंतर-बजौरा-नगवाईं घाटी, तो दाईं ओर उत्तर में मणिकर्ण वैली और दाईं ओर कुल्लू-डुग्गी लग वैली तो सीधे उत्तर में मानाली की ओर। 
 
बिजली महादेव का विस्तृत वर्णन व इसके कुल्लू से आते रुट को नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं -  यात्रा वृतांत - विजली महादेव वाया खराहल फाटी कुल्लु

रविवार, 30 जुलाई 2017

यात्रा वृतांत - बिजली महादेव जीप सफारी वाया नग्गर,जाणा-भाग1



नग्गर से जाणा फाल

नग्गर गाँव – नग्गर कुल्लू घाटी का एक प्रमुख पहाड़ी कस्बा है, जिसकी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। कुल्लू-मनाली घाटी के ठीक बीच ब्यास नदी के बाएं तट पर बसा यह मनोरम स्थल प्रकृति प्रेमी, संस्कृति विशारदों एवं अध्यात्म प्रेमियों के बीच खासा लोकप्रिय है, जिसके अपने विशिष्ट कारण हैं। एक तो यह समुद्रतल से लगभग 6700 फीट ऊँचाई पर बसा होने के कारण हिमालयन टच वाली शीतल आबोहवा लिए हुए है। जहाँ सर्दियों में एक से दो फीट बर्फ गिरती है, तो वहीं गर्मी में भी यहाँ का मौसम खुशनुमा रहता है। 

नग्गर के विशेष आकर्षण
देवदार के घने जंगलों की गोद में बसा नग्गर कभी कुल्लू राजा की राजधानी (राजा विशुद्धपालल द्वारा स्थापित) हुआ करता था। आज भी राजा का महल नग्गर पैलेस (आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व निर्मित) के नाम से एक हेरिटज होटल में तवदील है, जहाँ पर्यटक कुल्लवी संस्कृति का विहंगम दर्शन कर सकते हैं। कैसल में ही जगती पोट (एक चौकोर पत्थर की कई इंच मोटी शिला) है, जो देव-किवदंतियों के अनुसार मधुमक्खी का रुप लिए देवताओं के संयुक्त पुरुषार्थ द्वारा बशिष्ठ गांव के समीप जोगनी फॉल से उठाकर लाई गई थी। यह एक पवित्र स्थल है, जहाँ विशिष्ट अवसरों पर घाटी के देवताओं का समागम होता है। 
कैसल के उस पार सुंदर नक्काशी लिए भगवान नृसिंह का मंदिर है। थोड़ी दूरी पर आगे त्रिपुरासुन्दरी का पैगोड़ा शैली में बना सुंदर मंदिर है, जहाँ का वार्षिक शाड़ी मेला प्रख्यात है। कैसल से ही 2 किमी खड़ी चढ़ाई पर ठाऊआ का प्रसिद्ध भगवान कृष्ण मंदिर है, जो अपने वास्तुशिल्प और पुरातनता के लिए मशहूर है, जिसके साथ कई रोचक किवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं।

रौरिक गैलरी
कैसल से ही 2 किमी आगे मोटर मार्ग पर रोरिक गैलरी और म्यूजियम मौजूद हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता रखते हैं। रुसी लेखक, विचारक, यायावर, पेंटर, गुह्यवादी निकोलाई रोरिक की यह अंतिम 20 वर्षों की कर्मस्थली एवं तपःस्थली रही है। देवदार के घने बनों के बीच लगभग 200 एकड़ में फैला इसका परिसर गहन शाँति लिए हुए है, जहाँ आज भी संत-ऋषि रोरिक की सूक्ष्म चेतना की अनूभुति की जा सकती है।
इनके चित्रों की दुर्लभ प्रदर्शनी भवन में लगी हुई है। ऊपर हिमालयन संग्राहलय में इनकी संग्रहित तमाम तरह की मूर्तियां, पुरातात्विक महत्व की सामग्रियाँ प्रदर्शित हैं। नीचे एकांत में निकोलाई रोरिक की समाधी दर्शनीय है। इस स्थल से नग्गर-कुल्लु घाटी का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है। कुछ पल प्रकृति की नीरव गोद में विताने के इच्छुक एकांतप्रेमियों के लिए यह एक आदर्श स्थल है। रुसी पर्यटकों के लिए यह स्थान एक तीर्थस्थल से कम नहीं है।
घाटी का फल-सब्जी उत्पादन
यह घाटी सेब के बागों के लिए प्रख्यात है। घाटी में ढलानदार खेतों में धान की खेती प्रचलित पेशा रहा है, जो अब क्रमशः सब्जी उत्पादन और सेब के बगानों से भरता जा रहा है, जिसका अपना अर्थशास्त्र है। इस क्षेत्र में प्रख्यात जाटू का भूरा चाबल और राजमाह दाल जैसी पारम्परिक फसलें इस परिवर्तन के चलते अब धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं, जो कि चिंता का विषय है। सामने पहाड़ों को लगभग वर्षभर बर्फ की सफेट मोटी चादर ओढ़े हिमालयन की धौलाधार श्रृंखलाओं को देखा जा सकता है।
बिजली महादेव की ओर बढ़ता नग्गर-जाणा मार्ग
नग्गर से बिजली महादेव तक वन विभाग द्वारा घने जंगलों के बीच सड़क मार्ग बनाया गया है, जो जाणा तक पक्का है और आगे कच्चा। मार्ग प्राकृतिक सौंदर्य़ से भरा एक अद्वितीय रुट है, जिसका लुत्फ कुछ साहसिक पर्यटक उठाते हैं। देवदार के घने जंगलों के बीच से गुजरते इस मार्ग की सुंदरता, इसके बीच यात्रा का रोमाँच शब्दों में वर्णन करना कठिन है। जैसे ही नगर से जाणा की ओर अपने वाहन में बढ़ते हैं, रास्ते में दोनों और देवदार के गगनचुम्बी वृक्ष जैसे यात्रियों का स्वागत करते प्रतीत होते हैं। टेढे-मेढ़े बलखाते मार्ग से बढ़ता सफर बीच-बीच में हिम झरनों, पहाड़ी नालों के बीच यात्रा के रोमाँच को और बढ़ा देता है। कुछ ही मिनटों में खुली घाटी के दर्शन होते हैं, जिसके ऊपरी छोर पर है नशाला घाटी। 
नशाला घाटी-
अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण इस घाटी को मिनी स्विटजरलैंड की संज्ञा भी दी जाती है। घाटी में सीढ़ीदार खेतों में सब्जियों की खेती, सेब के बागान, धान के रोपे एक दिलकश नजारा पेश करते हैं। साथ ही अगर महीना सावन का हो तो घाटी में ऊपर नीचे तैरते बादलों के फाहे कब यात्री को अपने आगोश में ले लें, पता ही नहीं चलता। लेकिन इनका शीतल स्पर्श इनके आलिंग्न का अहसास दे जाता है। नशाला गाँव में ही सड़क के ऊपर माँ चामुण्डा का सुंदर एवं भव्य मंदिर है। गगनचुम्बी देवदार वृक्षों के बीच मंदिर में बिताए कुछ पल आस्थावान यात्रियों के लिए यागदार पल साबित होते हैं। 
यहाँ से आगे का पड़ाव निर्मल जल के झरनों-नालों से होता हुआ आगे बढ़ता है। रास्ते का विशेष आकर्षण रहते हैं फल से लदे हुए सेब के बागान, जो क्रमश बढ़ती ऊँचाई के बीच यात्रियों का स्वागत करते हैं। यह नजारा विशेष रुप में जुलाई-अगस्त से सितम्बर-अक्टूबर तक दर्शनीय रहता है, जब यहाँ फलों का सीजन अपने पूरे शबाब पर होता है।
घाटी के बीच में ब्यास नदी एक सफेद धारा के रुप में अपना परिचय देती है। यहाँ से ब्यास नदी के पार कटराईं पतलीकुहल शहरों के दर्शन और उत्तर में सुदूर मनाली घाटी के दर्शन एक अलग ही नजारा पेश करते हैं। गगनचुम्बी पर्वत शिखरों को ढ़के व इनके आर-पार उड़ान भरते अवारा बादलों की अठखेलियों का नजारा चित्त को रामाँचित करता है। रास्ते में देवदार वृक्षों की छाँव तले खुले में वृहद स्तर पर शहद उत्पादन को देखा जा सकता है। आधे घंटे बाद देवदार के जंगलों व फलों के बगानों के बीच सफर जाणा गाँव पहुँचता है, जो यहाँ का एक जाना-माना हुआ गाँव है। यहाँ पर्यटक गर्मी में भी ठंडक का खासा अहसास पाते हैं। 
जाणा फाल
जाणा गाँव से 2 किमी आगे आता है जाणा फाल, जिसे एक स्थानीय गांववासी ने विकसित किया है। इस मानव निर्मित झरने के साथ इनका ढाबा है, जिसकी खासियत है बहुत ही बाजिब दाम में स्थानीय-पारम्परिक प्राकृतिक व्यंजनों से भरी लजीज डिश, जिसमें जाटू के चावल, राजमाह की दाल, लिंगड़ी की सब्जी, देसी घी, सिड्डू, मक्के की रोटी, लोकल आर्गेनिक जड़ी-बूटियों की चटनी-अचार जैसे पौष्टिक एवं स्वादिष्ट व्यंजन शुमार रहते हैं।
एक ओर जहाँ देवदार के साथ आसमान को चूमते रई-तोस जैसे हिमालयन वृक्षों की हरियाली दिलो-दिमाग को सुकून देती है, साथ ही निर्मल जल व इसकी जलराशि की कल-कल ध्वनि, प्रकृति के अनहद नाद में मन के लय की अनुभूति देती है। यहाँ बिताए कुछ पल राहगीरों के लिए एक चिरस्मरणीय अनुभव सावित होते हैं, जिसका कोई दाम नहीं लगाया जा सकता। (...जारी)
इसका अगला भाग आगे दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं - नग्गर से बिजली महादेव जीप सफारी, भाग-2

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